संयुक्त राज्य अमेरिका के पत्रकार ,लेखक और भूराजनीतिक विषयों के जानकार , संयुक्त राज्य अमेरिका में दक्षिण एशिया के विषयों पर अमेरिकी कांग्रेस और सीनेट द्वारा गठित अनेक समितियों में आमंत्रित किये जाने वाले डा० रिचर्ड बेंकिन पिछले दिनों भारत की एक माह की यात्रा पर आये थे, अपनी इसी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश की भी यात्रा की| डा० रिचर्ड बेंकिन की यात्रा के समापन से पूर्व मैंने उनसे एक साक्षात्कार के द्वारा अनेक विषयों पर एक चर्चा की|
अमिताभ त्रिपाठी- डा० बेंकिन आप पिछले अनेक वर्षों से भारत की यात्रा पर आते रहे हैं, पंरतु इस बार आपकी यात्रा कुछ कारणों से महत्वपूर्ण है, एक तो आप कोविड की त्रासदी के बाद पहली बार भारत आये हैं इसलिए हम आपसे जानना चाहते हैं कि यह यात्रा पिछली यात्राओं से किस संदर्भ में अलग है?
डा० रिचर्ड बेंकिन- अधिकतर लोगों के मध्य मेरी पहचान बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से विभिन्न अन्तराष्ट्रीय मंचों पर उठाई गयी मेरी आवाज के चलते है, पंरतु इस यात्रा में अनेक नए विषय भी जुड़ गए हैं|
अमिताभ त्रिपाठी – आपने बांग्लादेश में हिन्दुओं के विरुद्ध हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए किये जा रहे अपने प्रयासों की चर्चा की तो हम पहले उस पर ही बात कर लेते हैं|
डा० रिचर्ड बेंकिन- बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहा अत्याचार मानवाधिकार की एक ऐसी त्रासदी है जिसकी उपेक्षा मानवाधिकार संगठन और मीडिया सहित सभी प्रमुख संस्थान करते आये हैं, अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भी इस पर गंभीरता नहीं दिखाई है| मैं इसे हिन्दुओं को नस्ली आधार पर धीरे धीरे नष्ट किये जाने का सुनियोजित प्रयास कहता आया हूँ और यह आश्चर्य है कि इस विषय पर लाखों लोगों की पीड़ा को लेकर घोर संवेदनहीनता दिखाई जा रही है| एक यहूदी होने के नाते हम नरसंहार और नस्ली आधार पर किये जाने वाले उत्पीडन को समझते हैं और इसी कारण यह विषय मेरे लिए भावना का विषय है और कोविड महामारी के बाद मैं फिर दक्षिण एशिया की यात्रा पर आया हूँ|
अमिताभ त्रिपाठी – आप अपनी भारत यात्रा के दौरान ही बांग्लादेश भी कुछ दिनों के लिए गए थे तो अब बांग्लादेश की ताजा स्थिति क्या है?
डा० रिचर्ड बेंकिन –पिछले अनेक दशकों से हिन्दुओं के दुर्गा पूजा समारोह के दौरान सुनियोजित रूप से दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले होते आये हैं और इसका प्रयोजन केवल यह होता है कि हिन्दुओं को डराया जाये ताकि वे दुर्गा पूजा का पर्व न मना पायें और हिन्दुओं की जनसंख्या कम हो जाये और या तो हिन्दू पलायन कर जाए या फिर अपना धर्म बदल दे | परन्तु ऐसा पहली बार हुआ है कि बांग्लादेश में पिछले वर्ष अक्टूबर में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले नहीं हुए और बांग्लादेश में जमीन पर मौजूद मेरे सहयोगियों ने मुझे बताया कि पुलिस प्रशासन ने पूरी मुस्तैदी से यह सुनिश्चित किया कि दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले न हों| बांग्लादेश की अपनी यात्रा के दौरान मुझे लगा कि अब हिन्दुओं को नस्ली आधार पर निशाना बनाने की घटना कम होने लगी है पंरतु अब भी अत्याचार के विरुद्ध पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था से उन्हें न्याय मिलना कठिन है और इस दिशा में बांग्लादेश को सुधार के लिए भारत और अमेरिका को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है|
अमिताभ त्रिपाठी- बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों पर होने वाले हमलों में आयी कमी का कारण आपकी नजर में क्या हो सकता है?
डा० रिचर्ड बेंकिन- आधिकारिक रूप से तो न तो भारत में और न ही बांग्लादेश में कोई स्वीकार करने को तैयार है , पर मुझे ऐसा लगता है और कुछ आफ द रिकार्ड मैंने सुना भी है कि भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न पर संवेदनशील होने से कुछ परिवर्तन दिख रहा है साथ ही भारत सहित विश्व में हिंदुत्व को लेकर नजरिया बदला है और लोगों को यह दिख रहा है कि हिंदुत्व की विचारधारा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए है न कि किसी का अस्तित्व समाप्त करने के लिए , इसलिए अब इस्लामवादी और वामपंथी दुष्प्रचार कि हिन्दू अत्याचार कर रहा है से बदल कर वास्तविकता लोगों को दिख रही है कि हिन्दुओं पर ही अत्याचार हो रहा है|
अमिताभ त्रिपाठी – कोविड की महामारी के चलते अनेक वर्षों के अंतराल के बाद आप भारत आये हैं तो कुछ परिवर्तन आपको प्रतीत हुआ है|
डा० रिचर्ड बेंकिन- इस वर्ष की यात्रा में मुझे एक नया विषय चर्चा में और लोगों के लिए चिंता का विषय बनता हुआ दिखाई दे रहा है और वह है भू राजनीतिक विषय और विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के मध्य उभर रहा संघर्ष| यह एक विषय है जिसके चलते यदि बांग्लादेश में हिन्दुओं की दशा में सुधार आने लगा तो भी इस विषय के अध्ययन के लिए मुझे भारत आते रहना होगा |
अमिताभ त्रिपाठी – वर्तमान स्थितियों में आप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को किस प्रकार देखते हैं?
डा० रिचर्ड बेंकिन- वर्तमान स्थिति में मेरे अनुसार भू राजनीतिक रूप से विश्व में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की शक्तियां एक ओर हैं जिसका प्रतिनिधित्व संयुक्त राज्य अमेरिका , यूरोप और भारत की ओर से किया जा रहा है और दूसरी ओर अधिनायकवाद और कठोर राज्य नियंत्रण की विचार रखने वाली शक्तियां हैं जिनमें प्रमुख रूप से चीन, रूस और ईरान आते हैं
अमिताभ त्रिपाठी – आपकी बात से यह संकेत मिल रहा है कि दुनिया फिर से खेमों में बंट रही है|
डा० रिचर्ड बेंकिन- ऐसा पूरी तरह से नहीं कह सकते क्योंकि सभी देश अपने राष्ट्रीय हितों और आवश्यकताओं के अनुरूप एक दूसरे से सम्बन्ध बनाकर रखते हैं परन्तु व्यापक रूप से सिद्धांत रूप से दुनिया में लोकतंत्र , स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली शक्तियाँ और अधिनायकवाद तथा कठोर राज्य नियंत्रण करने वाली शक्तियों की चर्चा आरम्भ हो गयी है| पिछले कुछ वर्षों में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं जैसे कम्युनिज्म का पतन, चीन द्वारा कर्ज देकर अनेक देशों की स्वतंत्रता को समाप्त करने की उसकी नीति का इन देशों की ओर से विरोध विशेष रूप से लैटिन अमेरिका के देशों द्वारा , इसी प्रकार अब्राहम समझौते के अंतर्गत मध्य पूर्व के अनेक इस्लामिक देशों ने मजहब के आधार पर अपनी नीति और कूटनीति के पुराने मार्ग को त्याग कर अधिक व्यावहारिक रूप से अपने देश के लिए लाभदायक नीति को स्वीकार किया है| इसी प्रकार पिछले एक वर्ष में युक्रेन ने रूस की आक्रामकता के आगे नहीं झुकते हुए अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जबकि अब तक ५ लाख लोग इस युद्ध का शिकार हो चुके हैं| इसी प्रकार चीन एशिया, अफ्रीका के अनेक छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाकर उनके सामरिक और रणनीतिक महत्व के द्वीप और बंदरगाह पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा है, श्रीलंका का हम्बंतूता , पकिस्तान का ग्वादर और एशिया, अफ्रीका और यूरोप तीनों के लिए महत्वपूर्ण लाल सागर के दक्षिण में स्थित जिबूती बंदरगाह इसके उदहारण हैं| अपनी बांग्लादेश की यात्रा के दौरान मुझे यह जानकारी मिली कि यह देश चीन की कर्ज नीति के जाल को समझकर उससे सावधान है| इसी प्रकार चीन भारत में भी अपने पाँव पसार लेना चाहता है और भारत को घेरना चाहता है परन्तु नरेन्द्र मोदी ने अपने शासन के दौरान यह साबित कर दिया है कि भारत भू राजनीतिक रूप से अपनी चुनौती और क्षमता को समझता है और उसेक साथ टकराव लेना किसी के लिए भी मंहगा पड़ने वाला है ,हालाँकि हम ( अमेरिका) यह समझते हैं कि मोदी को अपने राष्ट्रीय हितों और लोगों के हितों को देखते हुए बहुत संभलकर चलना पड़ रहा है और चीन से सावधान रहते हुए भी उसके साथ सामान्य व मधुर सम्बन्ध भी बनाए रखने हैं| लेकिन वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों को देखते हुए मेरा यह मानना है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाया जाना चाहिए |
अमिताभ त्रिपाठी – आपको यह क्यों लगता है कि अमेरिका चीन को लेकर अधिक सतर्क और सावधान हो गया है, जबकि आपके राष्ट्रपति तो टकराव की भाषा नहीं बोल रहे हैं?
डा० रिचर्ड बेंकिन- संयुक्त राज्य अमेरिका इस भू राजनीतिक संघर्ष के प्रति सजग हुआ है क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस ने चीन की कम्युनिष्ट पार्टी और अमेरिका के मध्य रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को लेकर एक हाउस सेलेक्ट कमेटी का गठन किया है| विस्कांसिन से अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य माइक गेलाघर को इसका अध्यक्ष बनाया गया है जिनकी रणनीतिक विषयों पर बहुत गहरी समझ है और उनका सैन्य तथा खुफिया जानकारी का लम्बा अनुभव है, इसी प्रकार इलिनोयस से डेमोक्रेट अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य राजा कृष्णमूर्ती भी इसके सदस्य हैं जो भारतीय मूल के हैं और बहुत प्रखर वकील हैं| इस हॉउस सेलेक्ट कमेटी को अमेरिकी राजनीति की दोनों पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट का राजनीतिक मतभेद से परे पूरा समर्थन हासिल है और यही इस बात का उदहारण है कि अमेरिका चीन की चुनौती को कितनी गंभीरता से ले रहा है| आने वाले समय में दुनिया का स्वरुप क्या होगा ? इसका निर्धारण इस बात से होगा कि यह भू राजनीतिक संघर्ष क्या रूप लेता है और उससे भी महत्वपूर्ण यह होगा कि आने वाले समय में भारत कितना शक्तिशाली होकर विश्व पटल पर उभरता है?
अमिताभ त्रिपाठी – अंतिम प्रश्न कि आपको भारत में कुछ परिवर्तन दिख रहा है?
डा० रिचर्ड बेंकिन – कुछ परिवर्तन अवश्य आये हैं| एक तो भारत अधिक आत्मविश्वास से विश्व में अपना स्थान बना रहा है, भारत आधुनिकता की ओर तेजी से बढ़ रहा है और मैंने पाया है कि अनेक प्रदेश भी आधुनिकता और विकास के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं जो बहुत सकारात्मक बात है